Gunjan Kamal

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यादों के झरोखों से "अहमियत"

यादें.... जिस पर वक्त की परत दर परत पड़ते ही धूल जमनी  शुरू हो जाती है लेकिन कुछ यादें ऐसी होती है जो हमारे मानस पटल पर ऐसे अंकित रहती हैं जिसका  मिटना लगभग नामुमकिन सा हो जाता है, जब भी उस तरह की कोई और घटनाएं होती है, वे और उससे जुड़ी  यादें अपने आप हमारे मानस पटल पर उभर कर आ जाती है।

मानस पटल पर अंकित ऐसी ही यादें, हमारे यादों के झरोखों ( हाॅं! इसे मैं यादों का झरोखा ही कहूंगी क्योंकि एक तरह से इसी में तो हमारी जिंदगी से जुड़ी अनगिनत यादें बंद रहती है) में तब तक कैद रहती हैं जब तक कि हम उस घटित घटनाओं को जो अब हमारे जीवन में संस्मरण का रूप ले चुकी है, को किसी के साथ साझा ना कर दे।

२०२२ के यादों के झरोखों में  अपने पर भुगती घटनाएं या जिसमें मेरी भागीदारी हुई हो, ऐसे ही संस्मरण आप सभी पाठकों को पढ़ने के लिए तो मिलेंगे ही  साथ ही वैसे संस्मरण भी होंगे जो कि कुछ दुरी से देखा और सुना गया होगा।

किसी ने क्या खूब कहा है 👇

" यादों के  झरोखों  से  जब  झांकती पुरानी  याद ,
  हृदयतार को फिर से झंकृत करती है पुरानी याद "

एक ऐसी ही झंकृत करने वाली २०२२ में घटित देखी और सुनी उस पुरानी याद को आप लोगों के समक्ष साझा करना चाहती हूॅं जिसने मेरे वजूद को ही झंकृत करके रख दिया था। आइए! उस घटना से आप सभी को रूबरू कराती हूॅं 👇

                     " अहमियत "

जब एक लड़की की  शादी होती है  तों उसे ससुराल  में उसके जितने भी रिश्ते-नाते होते हैं उसकी अहमियत समझाई और बताई जाती हैं । वह लड़की भी उस परिवार को अपना मानकर सबको मान - सम्मान और प्यार देने की कोशिश करती है। समय तो उसे लगता है लेकिन वह अपनी जिंदगी में  उनकी अहमियत क्या है धीरे - धीरे जान और समझ जाती है लेकिन एक लड़का  जिसकी  शादी उस लड़की से हुई रहती है वह क्या अपने ससुराल ( लड़की का मायका ) के सभी रिश्तों और नातों को वही अहमियत देता है जो उसकी पत्नी ( वह लड़की ) देती आ रही है?

कहने और सुनने को तो यह बहुत छोटा शब्द है लेकिन हमारे जीवन में घटित होने वाले शब्दों में यह शब्द बहुत अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक लड़की तो अपने ससुराल के लोगों और उनके रिश्ते - नातें को अहमियत दे देती है लेकिन एक लड़का अपने ससुराल और उनसे जुड़े रिश्ते - नातें को वह अहमियत नहीं दे पाता है जो उसकी पत्नी देती है और यह बात यूं ही बोल देने वाली बात नहीं है पर किस बात में आज के समाज का यथार्थ छुपा हुआ है। यही सच्चाई है और यह सच्चाई बहुत लोगों को कड़वी भी लगती आई है, लगती है और आगे भी लगती रहेगी। यदि मेरी कही इस बात से कुछ लोगों को बुरा लगता है तो उससे बचते हुए मैं कब तक समाज के इस इतिहास और वर्तमान को आप लोगों के समक्ष नहीं लाती रहूंगी? 

अब आप में से कुछ ऐसे होंगे जो मुझसे यह कहना चाहते  होंगे कि कुछ लड़के होते है जो अपने ससुराल के लोगों और उससे जुड़े रिश्ते - नातें को अहमियत देते हैं । ऐसा होता होगा, आप सही भी होंगे क्योंकि आपने उस चीज को देखा होगा या फिर किया भी हो लेकिन मैंने तो आजतक अपने जीवन में ऐसा होते बिल्कुल भी नहीं देखा । मैंने साल २०२२ के मई महीने की एक शाम जो देखा और सुना, वह आप सबसे  साझा करती हूॅं ।

मेरे पड़ोस में ही मेरी एक काॅलेज की दोस्त श्रुति रहती है और उसके साथ उसका  भरा - पूरा परिवार भी रहता है । भरा- पूरा से आप सब इतना तो समझ ही गए होंगे कि उस घर में मेरी दोस्त ‌श्रुति के सास - ससुर , देवर - देवरानी , उनके बच्चें और श्रुति के पति और श्रुति के बच्चे रहते हैं । उसकी शादी मेरे से पहले हुई थी इसलिए उसके बच्चे मेरे बच्चों से बड़े हैं। उस शाम जब मैं उसके घर गई तो वह मुझे उदास दिखी, जब मैंने पूछा तो पहले तो उसने बात टालने का प्रयास किया लेकिन मेरे जोर देने पर उसने मुझे बताया कि उसकी चचेरी  बहन के लड़के की शादी है जिसमें वह जाना चाहती है क्योंकि उसकी बड़ी बहन का उसके यहां ( ससुराल )  होने वाले सभी कार्यक्रमों  पर आना- जाना था,  इस कारण उसका जाना  भी मुझे जायज लगा क्योंकि हम जब किसी के शादी - ब्याह में  शामिल नहीं होंगेे तो हमारे घर के किसी भी कार्यक्रम में कौन आएगा ? हाॅं तो मैं बात श्रुति की कर रही थी,  जब उसने अपने पति से इस बारे में बातें की तो उसके पति का जवाब था कि मुझे ऑफिस से छुट्टी नहीं मिलेगी । अगर तुम्हें जाना है तो तुम जा सकती हो मैं तुम्हें जाने से नहीं रोक रहा लेकिन मुझसे उम्मीद मत करना कि मैं भी तुम्हारे साथ चलूॅंगा। यह कहकर वह रोने लगी। मैंने उसे मुश्किल से चुप कराया क्योंकि शादी के १५ साल की घुटन और उसके परिजनों और रिश्तेदारों के लिए किया गया तिरस्कार ऑंसू मिश्रित  शब्दों के साथ  उस दिन मेरे सामने एक साथ निकला था।  श्रुति का कहना था कि उसके पति और उसके सास-ससुर भी उसके माता-पिता और उसके रिश्तेदारों को कोई अहमियत नहीं देते । अपने मायके के लोगों और मायके से जुड़े हुए लोगों से, जितना संभव हो वह अकेले ही अभी तक निभाती आ रही है।

मैंने दूसरे दिन उसके पति कन्हाई से बातचीत के बीच में ही हॅंसी - मजाक में ही शादी में जाने के बारे में पूछा तो उनका जवाब था कि श्रुति के  मायके के रिश्तेदार  है वों लोग, मैं वहां पर जाकर क्या करूॅंगा ? अगर श्रुति की  अपनी बहन के बेटे की शादी होती तो मैं कुछ देर के लिए सोचता लेकिन यह तो इसकी चचेरी बहन है, इतने दूर के रिश्ते के बारे में बातें करना ही बेकार है।

उस दिन के बाद से अगले कुछ दिनों तक मैं यही सोचती रही कि इस समाज ने कैसी रीत बनाई है कि सब कुछ लड़कियों को ही करना पड़ता है और इतना सब करने के बाद भी क्या उस ससुराल में उसकी खुद की भी कुछ अहमियत है ?

सच कहूं तो बिल्कुल भी नहीं है अहमियत क्योंकि अगर किसी औरत को खुद की और अपने मायके की अहमियत बार - बार ससुराल में बतानी पड़े तो उसे समझ जाना चाहिए कि उसकी और उसके मायके और उनसे जुड़े हुए लोगों की ससुराल वालों की नजर में कोई अहमियत नहीं है। अगर किसी लड़की का पति और ससुराल वाले ऐसे हैं जो अपनी बहू और उसके परिवारवालों को अहमियत देते हैं तो उस लड़की से ज्यादा किस्मत वाली कोई लड़की नहीं होगी लेकिन आप लोगों से एक बार  फिर से कहूॅंगी कि ऐसे पति और ससुराल वालों की इस समाज में बहुत कम प्रतिशत ‌है।

अपनी दोस्त के बारे में सोच कर आज भी दुःखी बहुत होती  हूॅं चूंकि मैं वहां पर नहीं रहती, साल के कुछ महीने ही ऐसे होते हैं जब मुझे वहां जाना पड़ता है और तब ही उससे मेरी मुलाकात हो पाती है। डिजिटल इंडिया में रहने वाले हम लोग हैं तो थोड़ा बहुत देखना और सुनना फोन और टैब पर हो जाता है। काश! जिस तरह से हमारा देश तरक्की कर रहा है उसी रफ्तार से धीमी ही सही हमारे समाज के लोगों की सोच में भी तरक्की हो जाती तो अपनी और अपने से जुड़े लोगों के अस्तित्व की अहमियत को खोजती  महिलाओं को अपनी यूं अपनी अहमियत किसी को बतानी नहीं पड़ती।

शायद! किसी युग में ऐसा हो जाए, इसी उम्मीद के साथ अपनी यादों के झरोखों में कैद उस वक्त के एक पन्ने को बंद करती हूॅं और वादा करती हूॅं कि जल्द ही इस झरोखों में कैद २०२२ के एक और पन्ने को फिर से खोलूंगी और आप सबसे ऐसे ही संस्मरण साझा करूंगी।


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                                               धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻🙏🏻


    गुॅंजन कमल  💓💞💗


# यादों के झरोखें से   प्रतियोगिता 


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10 Comments

Dilawar Singh

23-Nov-2023 02:54 PM

सत्यवचन, वास्तविकता को बहुत सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया है आपने 🙏👌

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Prbhat kumar

07-Dec-2022 11:26 AM

बहुत खूब लिखा आपने

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👏👌🙏🏻

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